द्रौपदी हे!
कौन मानेगा तुझे वीरांगना ?
वस्त्राहरण
करता था दुशासन
रोटी
थी तुम
गिडगिडाती
थी तुम
थप्पड़
एक क्यों न दी
दुष्ट
दुशासन को?
स्वयं
नग्न हो कर
निर्लज्ज
वयोवृद्ध भीष्म की गोद में
क्यों
न तुम बैठ गई ?
धृतराष्ट्र
की अंध आँखों में
क्यों
न ठूसा दी
तीक्ष्ण
बाण जैसी तेरी उंगलियाँ?
क्यों
न दी एक लाट
जुआरी
युधिष्ठीर की पीठ में?
अर्जुन-भीम
को क्यों न कहे हिजड़े?
अगर
तुम उस समय बनी होती सबला
राह
न देखनी पड़ती पांच हजार बरस
हम
अबलाओं को सबला होते!
द्रौपदी
हे!
कौन
मानेगा तुझे वीरांगना?
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