कार्ल
मार्क्स के उदय से
जागी
थी एक आशा मुझ में.
(इश्वर
में से तो गँवा दी थी
बहुत पहले
आस्था और आशा)
कार्ल
मार्क्स के अस्त से
हुआ
मैं आशाहीन
आस्थाहीन.
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