धन्य गिरा गुर्जरी
द्रविड़ शब्द लहू में मिलाये,
वेदिक संस्कृत-प्राकृत-सुसंस्कृत-अपभ्रंश,
शब्दों की कोड़ीयाँ उछालती,पञ्च सिन्धु से
आई सिन्धु सागर.
धन्य गिरा गुर्जरी,
मेरी उदार उदात्त वाणी.
अरबी-फारसी शब्द ह्रदय में जड़े,
पोर्चुगीझ शब्द दत्तक लिये,
अंग्रेजी शब्द की हेट पहन कर बेबी का बनाया बाबा !
धन्य गिरा गुर्जरी,
मेरी उदार उदात्त वाणी.
लोकलय मात्रामेल संग,
संस्कृत छंद मिलाये,
उर्दू गझल को अपनाया,
शराब छोड़कर शरबत पीती की.
सोनेट को पृथ्वी छंद के झांझर पहनाये,
नोंएल का उपन्यास,कहानी गढ़ी.
धन्य गिरा गुर्जरी
मेरी उदार उदात्त वाणी.
जापान जा कर हाइकु लाये,
तान्का लाये,
हाईन्का लाये,
सब भाषा के सभी रूप अपनाए.
धन्य गिरा गुर्जरी,
मेरी उदार उदात्त वाणी.
मूक व्यथा मेरे मन में,
उदार उदात्त वाणी जिस प्रजा की ऐसी,
उसने कदापि न दिल से किया स्वीकार,
मलेच्छ का और मलिन का!
ऐसा क्यों?समाज न पाया में.
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