ओ मूर्ख शिरोमणि शास्त्री!
तुझे न सान
धृतराष्ट्रके वंशज
कलिकाल को तू मानता है सत्काल!
परम
पवित्र सीता की अग्नि परिक्षा करना,
लोकोक्ति
पर सीता का त्याग करना,
धरती
चीर कर सीता की आत्महत्या.
ब्राह्मणपुत्र
मरण कारण
शम्बूक
का वध,
इन्द्र्का
कामना की जिसने खुले मन से
उस
अहल्या को गुहा कारावास देना,
द्रौपदी
को सभामें नग्न करना,
सूतपुत्र
कर्ण की हालाहल अवहेलना,
शिष्य
एकलव्य के अंगूठे का छेदन,
उसे तू
सत्काल मानता है
ओ
मूर्ख शिरोमणि शास्त्री!
सब को
स्मान्तक,समान हक़
सार्वजनिक
मताधिकार,
सर्व
जन को वाणी स्वातंत्र्य
मानव
हक़ के दस्तावेज जैसा
अम्बेडकर
का संविधान
विज्ञान
तकनीकी आविष्कार के चमत्कार
बीजली,टी.वी.मोबाइल,कंप्यूटर......
सर्व
को उपलब्ध सुखसुविधा
इसको
तू कलिकाल मानता है,?
ओ
मूर्ख शिरोमणि शस्त्री!
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