हरेभरे
पहाड़
नीली
नीली जल भरी नदियाँ
रहोडोडेन्डरेन
फूले से गुंथे
योरप
सुन्दारी के रूप पर कहीं न दीखे
युद्ध
के दाग.
युद्ध
के रक्तसे लथबथ घांव.
स्वच्छ
बड़े मार्ग
चमकीली
भव्य इमारतें
लाल
छापरियाँ
शिल्पमंडित
फव्वारे उछालते चौक
विश्वास
चुगते कपोत
लगे
नहीं कि कभी यहाँ खेला गया था
भीषण
महायुद्ध
चार
करोड़ मानव के अस्थि
पिघले
पड़े हैं
इन
हरीभरी पहाड़ियां और
गेहूं-सरसों
के पीले पीले खेतोकी मिट्टी तले,
आसमान
से आग बरसाते बम के धमाके,
विह्वल
औरतें,मासूम बच्चों की चीखें
नील
सुन्दर झील जैसे आकाश में
समां
गए हैं.
राज
हंस जैसे श्वेत मेघ
तैर
रहे हैं अलसभर
कहीं
नहीं जली टूटी इमारतें
टूटे
हुए
चमकदमक
भरे डिपार्टमेन्टल स्टोर्स और
मला
में टहल रहीं हैं
क्रिसेन्थियम
फूल जैसी गोरी कन्याएं.
कहीं
नहीं हिटलर-मुसोलिनी के अवशेष
कहीं
नहीं उनकी दहाड़ से
कांच
की खिडकियों पर पडी दरारें
युद्ध
के दाग मिट गए हैं
युद्ध
के घांव मिट गए हैं
रूपसी
योरोपा की देह पर से
अब ओ
चिर यौवना रूपसी सुन्दरी
युरोपा,
दिल से
भी मिटा दे
युद्ध
के दाग.
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