कचहरी
की दीवार पर टंगे हुए
गांधी
को उलटा कर दो.
नहीं
सही जातीं चश्मे के काँच के पार से
उसकी
पारदर्शी आँखे.
वह
पागल कहता था,
'भ्रष्टाचार
मत करो'.
उसके
बिना गृहस्थी कैसे चले
क्या
केवल पगार से ?
बच्चें
विदेश कैसे जाएँ?
वह
पागल कहता था,
'परदारा
मात समान'
लेकिन
शरारती मन तो
परदारा
में ही भटकता है.
वह
पागल क्ल्ह्ता था,
'अरजदार
को अतिथि मानो"
मेज पर पाँव टिकाकर
झपकी
लेते हैं,उसी समय वह
टपकता
है तो
क्या
कडुए झहर जैसा न लगे वह?
वह
पागल कहता था,
'
स्वाद न जिह्वा को '
अरे
भाई,बिना स्वादवाले
जीवन
में क्या स्वाद?
वह
पागल कहता था,
' शराब
हराम करो '
उसके
बिना तो क्लब-रिसोर्ट में
मस्ती
कैसे आ सकती है?
हरी
लूँ या लाल,
रूपये
के नोट में मुश्कुराता
उसका
चेहरा
करता
है जैसे मजाक!
नोट
नहीं,कांपता है हाथ.
ओह,असहनीय
है उसका चेहरा.
रूपये
के नोट पर छापो अब
अम्बानी-अदानी
के चेहरे!
कचहरी
की दीवार पर टंगे हुए गांधी को
उलटा
कर दो!
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