दशाश्वमेघ घाट पर
बहते
गंगा
जल में
मुझे
दिखता है
हिनहिनाते
दश अश्वों का
रक्त
............
उपनिषद
की तरल ऋचाएं......
बुद्ध
महावीर की करुणामय वाणी...
मगधसम्राट
अशोक के विनय आदेश...
काशी
विश्वनाथ मंदिर के घंटारव....
कबीर
की उलट बांसियाँ.....
औरंगझेब
मस्जिद की अजानें....
तुलसी
की सरल वाणी...
१८५७
के विद्रोह की भड़कती आग के
प्रतिबिम्ब...
हिन्दू-मुसलमान
के रक्त से जलते
बिहार
को शांत करने के लिए
बरस
रहें गांधी के आँसू....
गंगा
जल में
मुझे
दिखते बहते
दलित
पीड़ित के निश्वास.....
No comments:
Post a Comment