दैव का अभिशाप सदाकाल !
आग लेने गये तो,
प्रोमिथियस की तरह जंजीरों में जकड़े !
स्वर्ग लेने गये तो,
त्रिशंकु की तरह उलटे सर लटकाये !
मानव मात्र की एक भाषा रचने गये तो,
बेबल का टावर तोड़ दिया !
ज्ञान फल चखने की,
ईव-आदम को मनाही फ़रमाई !
समानता लाये,
तो प्रजातंत्र खोया !
प्रजातंत्र लाये
तो समानता खोई !
दैव का अभिशाप स्दाकाल !
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