'बहरे इबरत है ये जनम मेरा,
अगले वक्तों का मैं पयगम्बर हूँ'
- हसन नईम
मुझे न कहना कोई
पयगम्बर,
यद्यपि मुझे भी सूझती है
कविता की पंक्तियाँ आसमान से
मुझे न कहना कोई
पयगम्बर.
यद्यपि मैं भी रुआं सा हो जाता हूँ
दीनदुखी दरिद्र दलित को देखकर.
मुझे न कहना कोई
पयगम्बर.
यद्यपि मुझे भी लगती है
मूसाईसामहम्मद की बातमें सच्चाई.
मुझे न कहना कोई
पयगम्बर.
यद्यपि मुझे भी मन होता है
बुद्ध कबीर गांधी अम्बेडकर बन्ने का.
मुझे न कहना कोई
पयगम्बर.
यद्यपि मेरी पीठ पर भी
उठते हैं निशान
मजबूर औरत खाती थी उस
तालिबानी चाबुक के.
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