तेरे
दर्द की कोई दवा नहीं,
मेरे
भाई....
जनम से
ही तू गुलाम
आज दिन
तक तू वही का वही
भूखा
पेट,टूटी टांग से लडखडाता
लारी
खींचता या धकियाता निरंतर जिन्दगी की,
तू ही
गुलाम,तू ही दास,तू ही अनास,
तू ही
शूद्र,तू ही दलित,तू ही पीड़ित,
तू ही
मजदूर,तू ही खेतमजदूर....
तेरे
लिए राजाशाही का सिंहासन लाये
तेरे
लिए सामंतशाही की शमशेर लाये
स्वतंत्रता,समानता,बंधुता
के नारे लगाती
फ्रेंच
क्रांति लाये....
अमरीकन
प्रजातंत्र लाये...
इंग्लेंड
की रानी को मेग्नाकार्टा दिया
फिर भी
तू वही का वही रहा
बालमजदूर,खदानमजदूर,मिलमजदूर
भूखा,प्यासा,बेहाल
थका हारा....
लेनिन
आग बरसाता समाजवाद लाये
फिर भी
तू वही का वही रहा.
समाजवाद
व्यर्थ
अब
पूंजीवाद व्यर्थ
उदारीकरण,वैश्वीकरण,निजीकरण
का मन्त्र
व्यर्थ....
में
क्या करूँ,भाई,
तेरे
दर्द की कोई दवा नहीं.....
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